गुरु नानक देव जी का जीवन परिचय II GURU NANAK DEV JI BIOGRAPHY
गुरु नानक देव जी का जीवन परिचय /// GURU NANAK DEV JI BIOGRAPHY
प्रस्तावना:
गुरु नानक देव जी सिख धर्म के पहले गुरु और संस्थापक थे। उनका जीवन एक प्रेरणा का स्रोत है और उन्होंने समाज में एकता, समानता, प्रेम और आध्यात्मिक ज्ञान का संदेश दिया। उनका जन्म 15 अप्रैल 1469 को पंजाब (अब पाकिस्तान के ननकाना साहिब) में हुआ था। वे धार्मिक असमानता, जाति-पाति, भेदभाव और अंधविश्वास के खिलाफ थे और उन्होंने लोगों को एक परमात्मा के सिद्धांत की शिक्षा दी।
प्रारंभिक जीवन और परिवार:
गुरु नानक देव जी का जन्म एक खत्री हिंदू परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम कालू मेहता और माता का नाम तृप्ता देवी था। उनके पिता एक पटवारी (राजस्व अधिकारी) थे। नानक देव जी के एक बड़े भाई भी थे, जिनका नाम श्री लक्ष्मी दास था।
गुरु नानक बचपन से ही असाधारण प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने छोटी उम्र में ही धार्मिक और दार्शनिक प्रवृत्ति दिखाई। जब वे छोटे थे, तो अपने साथियों के साथ खेलते हुए भी धार्मिक प्रवचन दिया करते थे। उनके बचपन की कई घटनाएं यह दर्शाती हैं कि वे प्रारंभ से ही अध्यात्म की ओर आकर्षित थे।
शिक्षा और ज्ञान:
गुरु नानक देव जी की शिक्षा का प्रारंभ उनके गांव में ही हुआ। उन्होंने संस्कृत, फारसी और अरबी भाषाओं में शिक्षा प्राप्त की। गुरु नानक ने शिक्षा के दौरान अपनी अद्वितीय बुद्धिमत्ता का परिचय दिया। वे केवल पाठ्यक्रम के अध्ययन तक सीमित नहीं रहे, बल्कि उन्होंने गहरे आध्यात्मिक ज्ञान का भी अनुसंधान किया।
जब गुरु नानक जी 7 साल के थे, तब उनके पिता ने उन्हें गाँव के पंडित से पढ़ने के लिए भेजा। लेकिन गुरु नानक ने केवल एक ही अक्षर "ओम" के अर्थ में अपनी गहरी रुचि दिखाई और उस पर गहन विचार किया। यह घटना दर्शाती है कि वे बचपन से ही भौतिक शिक्षा की अपेक्षा आध्यात्मिकता की ओर झुके हुए थे।
विवाह और पारिवारिक जीवन:
16 वर्ष की आयु में गुरु नानक जी का विवाह सुलक्षणा देवी से हुआ। विवाह के बाद वे अपने माता-पिता के साथ रहते थे और घर के कामकाज में सहायता करते थे। गुरु नानक और सुलक्षणा देवी के दो पुत्र थे - श्रीचंद और लक्ष्मी दास।
हालांकि, गुरु नानक ने पारिवारिक जीवन को कभी भी अपनी आध्यात्मिक खोज और समाज सुधार के मार्ग में बाधक नहीं बनने दिया। उन्होंने अपने परिवार की जिम्मेदारियों को निभाते हुए भी लोगों को जागरूक करने का कार्य जारी रखा।
जीवन की पहली आध्यात्मिक घटना:
गुरु नानक की आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत उस समय हुई जब वे 30 वर्ष के थे। एक दिन, वे अपने मित्र मर्दाना के साथ नदी में स्नान करने गए। स्नान करते समय, अचानक वे लापता हो गए और तीन दिनों तक लापता रहे। तीन दिन बाद, जब वे लौटे तो उन्होंने कहा, "ना कोई हिंदू है, ना कोई मुसलमान।" इस घटना के बाद, उन्होंने अपना सारा जीवन समाज की सेवा और परमात्मा की भक्ति में समर्पित कर दिया।
इस घटना के बाद, गुरु नानक ने अपने उपदेशों की शुरुआत की और समाज में व्याप्त बुराइयों और अंधविश्वासों के खिलाफ आवाज उठाई।
उपदेश और शिक्षाएँ:
गुरु नानक देव जी के उपदेश अत्यंत सरल, स्पष्ट और सटीक थे। उन्होंने सिख धर्म के मूल सिद्धांतों को स्थापित किया, जिनमें तीन मुख्य बातें थीं:
1. नाम जपो: ईश्वर के नाम का सुमिरन करना।
2. कीरत करो: ईमानदारी से मेहनत करके अपना जीवन यापन करना।
3. वंड छको: जरूरतमंदों के साथ अपनी आय और साधन साझा करना।
गुरु नानक जी ने समाज को यह सिखाया कि सभी मनुष्यों को एक समान माना जाना चाहिए, चाहे उनका धर्म, जाति या सामाजिक स्थिति कुछ भी हो। उन्होंने सभी प्रकार के भेदभाव को नकारते हुए "एक ओंकार" का संदेश दिया, जिसका अर्थ है कि ईश्वर एक है और सबके लिए समान है।
चार उदासियाँ (धार्मिक यात्राएँ):
गुरु नानक जी ने अपने जीवन में चार प्रमुख उदासियाँ (धार्मिक यात्राएँ) कीं। इन यात्राओं का उद्देश्य समाज में व्याप्त बुराइयों और अंधविश्वासों का उन्मूलन करना था। उन्होंने भारत, तिब्बत, श्रीलंका, अरब और अफगानिस्तान तक यात्रा की और लोगों को सत्य, प्रेम, और ईश्वर की भक्ति का संदेश दिया।
1. पहली उदासी (पश्चिम की ओर): गुरु नानक ने पंजाब, राजस्थान, गुजरात, और सिंध (अब पाकिस्तान) की यात्रा की।
2. दूसरी उदासी (दक्षिण की ओर): इस यात्रा में उन्होंने श्रीलंका और दक्षिण भारत के विभिन्न स्थानों का भ्रमण किया।
3. तीसरी उदासी(उत्तर की ओर): इस दौरान उन्होंने कश्मीर, लद्दाख और तिब्बत की यात्रा की।
4. चौथी उदासी (पूर्व की ओर): गुरु नानक ने बंगाल, असम, और बिहार जैसे पूर्वी क्षेत्रों की यात्रा की।
इन यात्राओं के दौरान उन्होंने विभिन्न धार्मिक स्थलों पर प्रवचन दिए और लोगों को सच्चे धर्म की ओर प्रेरित किया।
लंगर की प्रथा:
गुरु नानक देव जी ने "लंगर" (सामूहिक भोजन) की परंपरा शुरू की, जो आज भी सिख धर्म का एक महत्वपूर्ण अंग है। लंगर की अवधारणा के माध्यम से उन्होंने समाज में समानता और एकता का संदेश दिया। इसमें सभी लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ बैठकर भोजन करते हैं।
लंगर का मुख्य उद्देश्य समाज में जातिगत भेदभाव को समाप्त करना और सभी को एक समान दृष्टि से देखना था। इस परंपरा के माध्यम से गुरु नानक ने यह संदेश दिया कि सभी मनुष्य एक समान हैं और ईश्वर की दृष्टि में सभी का स्थान बराबर है।
गुरु नानक देव जी के प्रमुख विचार:
1. एक ईश्वर की उपासना: गुरु नानक ने सिखाया कि ईश्वर एक है और वह हर जगह विद्यमान है। उन्होंने कहा कि ईश्वर निराकार है और उसका कोई रूप या आकार नहीं है।
2. समानता: गुरु नानक ने सभी मनुष्यों के बीच समानता का संदेश दिया। उन्होंने जाति, रंग, धर्म या लिंग के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव का विरोध किया।
3. ईमानदारी और मेहनत: उन्होंने कहा कि व्यक्ति को मेहनत और ईमानदारी से अपनी आजीविका अर्जित करनी चाहिए और दूसरों के साथ उदारता से साझा करना चाहिए।
4. अहिंसा और प्रेम: गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और अहिंसा का मार्ग दिखाया। उन्होंने कहा कि नफरत और हिंसा से कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता।
मृत्यु और विरासत:
गुरु नानक देव जी ने अपने अंतिम दिनों में करतारपुर (अब पाकिस्तान में) नामक स्थान की स्थापना की। यहां वे अपनी अंतिम सांस तक रहे। 22 सितंबर 1539 को गुरु नानक जी ने शरीर त्याग दिया। उनकी मृत्यु के बाद उनके अनुयायियों ने उनके उपदेशों का पालन जारी रखा और सिख धर्म का प्रसार किया।
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं को उनके अनुयायियों ने "गुरु ग्रंथ साहिब" में संकलित किया, जो सिख धर्म का प्रमुख धार्मिक ग्रंथ है।
निष्कर्ष:
गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएं आज भी मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उन्होंने समाज में व्याप्त बुराइयों का उन्मूलन किया और लोगों को सच्चाई, प्रेम और सेवा का मार्ग दिखाया। उनके द्वारा दिया गया "एक ओंकार" का संदेश आज भी हमें यह सिखाता है कि सभी मनुष्य एक हैं और हमें आपसी भेदभाव को छोड़कर प्रेम और सद्भाव के साथ रहना चाहिए।
गुरु नानक देव जी के विचार और उपदेश आज भी प्रासंगिक हैं और हमें एक सच्चे, नैतिक और आध्यात्मिक जीवन जीने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी शिक्षाएं न केवल सिख धर्म के अनुयायियों के लिए बल्कि पूरी मानवता के लिए मार्गदर्शन का स्रोत हैं।
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